बदलता गाँव, बदलता देश
देश को आजाद हुए 68 (2015) वर्ष हो चुके हैं और स्वाधीनता के इन 68 वर्षों में देश काफी आगे निकल गया है| महानगर से लेकर गाँव तक में स्थितियां काफी बदली हैं| गाँव पहले से ज्यादा समृद्ध हुए हैं और ग्रामीण ज्यादा जागरूक हुआ है|
देश में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है| महिलाएं हो या अनुसूचित जाती या जनजाति सभी की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति में भी एक सकारात्मक बदलाव आया है| समाज के सभी क्षेत्रों में इनका प्रभाव और योगदान बढ़ा है| लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है की सामाजिक न्याय की चुनोतियाँ समाप्त हो गयी हैं| अभी भी काफी कुछ करना शेष है| सरकार के साथ-साथ आज बड़े पैमाने पर सामाजिक पहलों की भी आवश्यकता है| सामाजिक व्यवस्थाओं को निरस्त करने की बजाये यदि उन्हें शिक्षित, सभ्य और जागरूक बनाया जाये तो वे सामाजिक परिवर्तन की बड़ी वाहक बन सकती हैं|कम हुई गरीबी
परिवारों के मुख्य श्रोत के लिए,
गैर-कृषि कार्यकलापों पर निर्भर होने के कारण ग्रामीण गरीबी में काफी कमी आई है|
ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी अनुपात 90 के दशक के पहले 50 फीसदी से अधिक रहा है| 90
के दशक के मध्य आते – आते थोड़ा कम हुआ, लेकिन उसके बाद इस अनुपात में तेज़ी से कमी
आई| जहाँ वर्ष 1983-2010 के बीच बेहद गरीबी में जीने वाले अथार्त गरीबी-रेखा से
नीचे जीवन यापन करने वाले 75 फीसदी के करीब थे, वही 2015 तक आते-आते गरीबी अनुपात
का अनुमान 26.7 फीसदी के आसपास है|
समाजशास्त्रिय कसौटी
किसी भी समाज के बदलाव को समझने के
लिए समाजशास्त्रियों ने कुछ मानक तय कर रखे हैं| जैसे –
जनसँख्या की स्थिति, गरीबी का स्तर,
आर्थिक विकास, कृषिगत विकास, भूमि सुधार, शिक्षा उपलब्धता, स्वास्थ्य सेवायों की
आपूर्ति, संपर्क के साधन (रेल, सड़क), आवासीय वय्वस्थ्ता|
साक्षरता और शिक्षा ने ग्रामीण भारत
की विकास में बड़ी भूमिका निभाई है| ग्रामीण क्षेत्र में साक्षरता 71 प्रतिशत है जो
की शहरी क्षेत्र की साक्षरता 84 प्रतिशत से काफी करीब है| यह आंकड़ा ही ग्रामीण
भारत की तस्वीर को काफी स्पष्ट कर देता है| शिक्षा और स्वावलंबन के बाद राजनीती की
बारी आती है और यहाँ भी देश की महिलाएं और पिछड़ा वर्ग धीरे-धीरे अपने उपस्तिथि
दर्ज करने लगा है|
यह ठीक है की देश काफी बड़ा है और
पूरे देश में बदलाव का कोई एक पैटर्न नहीं है| यह भी ठीक है की एक ही प्रकार के
परिवर्तन को पूरे देश में महसूस नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह सच है की देश के प्रत्येक
हिस्से में कुछ न कुछ परिवर्तन हुआ है| लोंगो के जीवन में और लोंगो के सामाजिक
जीवन में एक नयी ताजगी महसूस की जा सकती है|
आज सरकार के साथ-साथ सामाजिक पहलों
की भी बड़ी आवश्यकता है| सामाजिक व्यवस्थाओं को निरस्त करने के बजाय यदि उन्हें
शिक्षित, सभ्य और जागरूक बनाया जाये तो वे सामाजिक परिवर्तन का बड़ा वाहक बन सकती
हैं| जैसे खाप पंचायतों की आज काफी आलोचना की जाती है की वे कट्टरता और मध्ययुगीन
कानूनों को बढ़ावा दे रही हैं| परन्तु यदि उन्ही खाप पंचायतों को सकारात्मक दिशा दी
जाये तो समाज पर उनके प्रभाव का सदुपयोग किया जा सकता है| यदि खाप पंचायते कन्या
भ्रूण हत्या और छुआछूत को गलत घोषित कर दें तो एक झटके से वे कुरुतियाँ दूर हो
सकती हैं| ऐसा हरियाणा और उत्तर प्रदेश की कुछ एक खाप पंचायतों ने उदहारण भी
प्रस्तुत किया है इसमे कन्या के जन्म पर वृक्षारोपण करने और उस दम्पति को
पुरुस्कृत करने का निर्णय लिया गया है| कानून तो अपना काम करेंगे, परन्तु कानून से
अधिक आवश्यकता समाज के ऐसे प्रयासों की है| इन प्रयासों को बढ़ाएं जाने से ही देश
में सही अर्थों में सामाजित न्याय की अवधारणा को साकार किया जा सकता है|
नवसंचार का योगदान
आज हम सूचना क्रांति के युग में जी
रहे हैं| याद कीजिये वो दौर जब पहली बार गाँव के लोंगो का संपर्क रेडियो से हुआ
था| फिर टेलीविज़न आया| टेलीविज़न आने के बाद गाँव के लोंगो का देश-दुनिया से संपर्क
स्थापित हुआ| उनकी सोच व् रहन-सहन के तरीके बदले| आज प्रत्येक घर में मोबाइल पहुँच
चूका है और लोंग चिट्ठी न लिखकर एसएम्एस व् वाट्सएप करते हैं| सूचना के इस प्रवाह
ने भारत के ग्रामीण जीवन को भी बदला है| उदारीकरण का जो दौर 1990 में शुरू हुआ
उसका सकारात्मक-नकारात्मक असर ग्रामीण जीवन पर स्पष्ट रूप में पड़ा है| अब गाँव के
लोंग जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठकर शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा व् विकास के बात
करने लगे हैं|
निष्कर्ष
ज्ञान भूमि के रूप में पूरे विश्व में
जाना जाने वाला भारत आज आगे बढ़ रहा है तो इसके पीछे ग्रामीण शक्ति है| देश आगे बढ़
रहा है इसका मतलब यह है की हमारे गाँव आगे बढ़ रहे हैं| खैर, अब समय आ गया है की
प्रत्येक भारतवासी बदलाव की इस सुनहरे एहसास को कायम रखते हुए इसमे अपनी भूमिका
सुनिश्चित करे|
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