शहरी मनई - एक परिचय


 "शहरी मनई", उन सभी व्यक्तियों की कहानी है जिन्होंने जीवन का ज़्यादातर समय पढ़ाई या नौकरी की वजह से शहर में बिताया है परंतु अपनी आत्मा और दिल गाँव में बसा रखी है।


लेखक ने यह शिर्षक इसलिये चुना है क्योकी लेखक को बचपन मे उनके गाँव (जन्मस्थान - सनाथपुर गाँव , भदोही जनपद, उत्तर प्रदेश ) में उनके सगे काका द्वारा इसी तरह से संबोधन किया जाता था । इस संबोधन के पीछे प्रमुख कारण यह था की लेखक की शिक्षा मूलतः गाँव से करीब 80 किमी दूर प्रयागराज (पुराना नाम - इलाहाबाद शहर) मे हुयी थी और गाँव में केवल गर्मी या जाड़ों की छुट्टियों में कुछ महिनों के लिये ही जाना होता था, ज़्यादातर समय शहरों में ही बीतता था।

लेखक ने प्रयाराज शहर से वर्ष 2000 मे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सांख्यिकी (Statistics) मे परा-स्नातक करने के बाद वर्ष 2003 मे अर्थशास्त्र विषय से IGIDR Mumbai से एम. फ़िल कोर्स किया जिसके पश्चात वर्ष 2004 से अभी तक से कार्पोरेट जगत में कार्यरत है। वर्तमान समय मे लेखक बैग्लोर मे 2011 से परिवार के साथ रहकर जीवन-यापन कर रहें है। लेखक ने रोज़गार के साथ सत्र 2018-2023 मे PhD की पढ़ायी NIT Tiruchirappalliसे अर्थशास्त्र विषय में पूर्ण किया है और अभी काशी विद्यापीठ (उत्तर प्रदेश) से लॉ की पढ़ायी कर रहे है।

वर्ष 2015 से लेखक ने माँ-पिता से प्रेरणा लेकर अपने जन्मस्थान मे ग्रामीण विषयों पर कार्य करने के लिये “फार्फ” नामक एक सामाजिक संगठन की शुरूआत की है जो मूलतः भदोही जनपद में शिक्षा, समाज कल्याण और ग्रामीण शोध पर लगातार कार्य कर रही है। व्यक्तिगत जीवन में लेखक का मानना है की उन्हें कुछ करने की प्रेरणा दार्शनिक पुस्तक गीता और विवेकानंद के विचारों से मिलती है।

‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥’





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