ग्रामीण विकास में पंचायती राज की भूमिका
देश व् समाज के विकास में पंचायत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है|
पंचायत अतीत में भी थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी, लेकेन भविष्य की
पंचायत को और मजबूत बनाना होगा क्योंकि पंचायत लोकतंत्र एवं विकास की पहली सीढ़ी
है| यह जितनी उन्नत एवं सवैधानिक होगी, देश की वय्वस्था में उतना ही निखार आएगा|
भविष्य की पंचायत और सशक्त बनानी होगी, जिससे विकास की गति और तेज़ हो सके| पंचायत
ने हर वर्ग को हिस्सेदारी दिलाते हुए लोकतंत्र की असली तस्वीर दिखाई है| यही वजह
है की सविधान निर्माण के वक़्त ही गांधी जी के ग्राम स्वराज पर चर्चा हुई और सविधान
के अनुच्छेद ४० में संसोधन करके पंचायत को जोड़ा गया| यह अलग बात है की उस समय
पंचायत को वह अधिकार नहीं मिला, जो आजादी के वक़्त ही मिल जाना चाहिए था| लेकिन समय
के साथ इस चूक को महसूस किया गया और सविधान में संसोधन की जरूरत समझी गयी| सविधान
के ७३ संसोधन के जरिये ग्राम स्वराज के सपने को साकार किया गया|
विकास किसी भी तरह का हो, उसमे किसी भी तरह से पंचायत अपनी भूमिका
निभाती हैं| पंचायत की बिना विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि आज भी
भारत की ६५% से जायदा की आबादी गाँव में रहती है और गाँव के विकास की पहले सीढ़ी
पंचायत है| जब तक पहली सीढ़ी पर पैर नहीं रखा जाता तब तक बहुमंजिला ईमारत पर नहीं
पंहुचा जा सकता है, उसी तरह से विकास की किसी भी पहलु पर पंचायत की अनदेखी नहीं की
जा सकती है|
आधुनिक
काल की पंचायत
जब तक गाँव का बहुमुखी विकास नहीं होगा, तब तक विकसित भारत का सपना
अधुरा रहेगा| इसके तहत यह वयवस्था बनी की गाँव का शासन गाँव की और से चुने गए
प्रतिनिधि चलायें, यही से पंचायती राज की अवधारणा अस्तित्व में आई| आजादी की बाद
पंचायती राज एक्ट बना| पंचायते कार्य करने लगी लेकिन वे मूल रूप से पंगु जैसी ही
रही| पंचायतों का असली स्वरुप ७३वे सविधान संसोधन के बाद उजागर हुआ| वर्ष १९९२ में
७३वे सविधान संसोधन में सविधान के भाग-९ के अनुच्छेद २४३ में तीनो पंचायतों को
सवैधानिक संस्था घोषित किया गया| इस
वयवस्था को वर्ष १९९४ में पूरे देश में एक साथ लागू किया गया जिसमे तय हुआ
की पंचायती राज वयवस्था के तहत त्रिस्तरीय प्रणाली बनायीं जाये| ये तीन अंग है –
ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत|
ग्राम
पंचायत
गाँव की सभी मतदाता की मिलाकर ग्रामसभा का गठन किया जाता है| कम से कम
पांच सौ आबादी पर एक ग्राम पंचायत का गठन हो सकता है| कई बार न्यूनतम संख्या की
पूर्ती के लिए दो और दो से ज्यादा गाँव को मिलाकर भी ग्राम पंचायत का गठन किया
जाता है| ग्रामसभा ही ग्राम पंचायत के कार्यों की निगरानी और मार्गदर्शन करती है| आय
– व्यय सहित गाँव से जुडी समस्याओं के निदान के लिए उन्हें फैसले लेने का उन्हें
अधिकार होता है| ग्रामसभा के प्रधान/सरपंच का चुनाव जनता सीधे चुनेगी, जबकि
क्षेत्र और जिला पंचायत का चुनाव जनता की और चुने गए सदस्य करते हैं| तीनो पंचायत
कर कार्यकाल पांचसाल के लिए होता है|
सरकार की और से यह अनिवार्य किया गया है की ग्रामसभा की बैठक वर्ष में
कम से कम दो बार अवश्य बुलाई जाये| बैठक में 1/5 ग्राम सभा के लिए और 1/3 ग्राम
पंचायत के लिए कोरम होने पूरा आवश्यक है| ग्राम सभा की खुली बैठक में ग्रामीणों के
द्वारा दिए गए सुझाव के तहत विकास से सम्बंधित प्रस्ताव तैयार हो| इसके अलावा
ग्राम पंचायत की गवर्निंग बॉडी की हर माह बैठक होनी चाहिए| इस बैठक में ग्राम
पंचायत के सदस्य तय करते हैं की विभिन्न मद से आये पैसे को विकास कार्यों में खर्च
किया जाये| ग्राम सभी की कुछ प्रमुख कार्य इस तरह से हैं:
1. ग्रामीण योजनाओं की प्राथमिकता निर्धारित करना
2. वृक्षा रोपड़ और वन सरंक्षण पर ध्यान देना
3. युवा शक्ति के विकास हेतु खेल – कूद की सुविधाओं का विकास करना
4. साफ़ सफाई की वयवस्था करना, सडको का निर्माण और रख रखाव करना|
5. विद्यालय और अस्पताल की प्रबंध करना आदि
क्षेत्र
पंचायत
क्षेत्र पंचायत को दूसरी इकाई का दर्जा दिया गया है| एक क्षेत्र
पंचायत में कई ग्राम पंचायत को शामिल किया गया| क्षेत्र पंचायत स्तर पर नियुक्त
ब्लाक विकास अधिकारी को बतौर नोडल अधिकारी जिम्मेदारी दी गयी| यहाँ लोकतान्त्रिक
प्रक्रिया के तहत प्रमुख का चुना करवाया गया| क्षेत्र पंचायत की विभिन्न वार्डो या
गाँव से चुने गए सदस्य ही प्रमुख का चुनाव करते है| क्षेत्र पंचायत के कुछ प्रमुख
कार्य हैं:
1. शुद्ध पीने के पानी की वयवस्था
2. प्राथमिक स्वाथ्य सुविधायों का विकास
3. सडको का निर्माण और प्रबंधन
४. ग्रामीण लघु और कुटीर उद्योग को बढ़ावा
5. कृषि विकास का कार्य करना आदि
जिला
पंचायत
जिला पंचायत यानि जिला परिषद् का गठन अधीनस्थ पंचायतों पर नियंत्रण
तथा उनके कार्यों पर समन्वय स स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाता है| जिला
पंचायत अधीनस्थ पंचायतों तथा राज्य सरकारों के बीच कड़ी का काम करती है| प्रदेश में
लागु त्रि-स्तरीय पंचायती राज वयवस्था की यह सब से सर्वोच्च कड़ी होती है| इसका
नोडल अधिकारी जिला विकास अधिकारी होता है| जिला पंचायत अध्यक्ष का भी चुना वार्ड
और गाँव से चुने गए सदस्य करते हैं| जिला पंचायत के कुछ प्रमुख कार्य हैं:
1. जिला पंचायत का वार्षिक बजट तैयार करना
2. राज्य सरकार के द्वारा जिलों के दिए गए अनुदान को पंचायत समितियों
में वितरित करना
3. ग्राम पंचायत के कार्यों का समन्वय तथा मूल्याकन करना
Comments
Post a Comment