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बैंक की सीमाएँ और साहूकारों के उच्च ब्याज क़र्ज़ -

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महँगे ब्याज दरों में क़र्ज़ का चलन सदियों से चला आ रहा है, और अभी भी ज़्यादातर प्रदेशों में जारी है और शायद आगे भी जल्द समाप्त होने की कम संभावना है। अभी भी ज़रूरतमंद व्यक्तियों को ग़ैर-सरकारी सूदखोरों से 5-10 प्रतिशत प्रति माह के उच्च ब्याज दरों पर क़र्ज़ लेना काफ़ी प्रचलित है। उत्तर प्रदेश में तो इस दिशा मे उप्र साहूकारी विनियमन अधिनियम 1976 को समाप्त भी कर दिया है, पर गाँवों में उच्च ब्याज दरों पर क़र्ज़ बहुत ही सामान्य बात है। प्रतिष्ठित अख़बार “द हिन्दू” पर छपे एक लेख के  अनुसार पुलिस आँकड़ों के हिसाब से 797 लोंगो ने 2017-2023 के बीच कार्ड के बाद मिलनें वाली प्रताड़नाएं और हिंसा से बचने के लिये अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। आज बैंक नये नियमों के तहत गाँव - क़स्बों तक पहुँचनें में सफल ज़रूर हो गये है पर काग़ज़ी प्रकिया और क्रेडिट रिस्क के कारण सभी ज़रूरतमंदों को लोन देने में नाकाम है। सरकार और पुलिस को इस पर सख़्त कार्रवाई की ज़रूरत है की किसी भी इंसान को क़र्ज़ के लिये किसी भी तरह से मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाएं ना दिया जाये। लोन या क़र्ज़ ना लौटाने पर जो भी विधिवत कार्यवाही हो, उ

राजनीति में फ़िल्मी कलाकार और क्रिकेटरों की उपस्थिति और भागीदारी

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  17वीं लोक सभा का गठन 2019 मे पाँच वर्षों के लिये हुआ था और 18वीं लोकसभा का चयन 2024 मे अप्रैल या मई माह तक हो जाने की संभावना है। 17वीं लोक सभा में चूने गये सांसदों मे हर बार की तरह कुछ लोग ऐसे भी थे जो फ़िल्म या क्रिकेट की दुनिया के जानें माने चेहरे थे। इनमें से कुछ चर्चित नाम थे: हेमा मालिनी (भाजपा), किरण खेर (भाजपा), मिमी चक्रवर्ती (तृणमूल कांग्रेस), नूसरत जहां (तृणमूल कांग्रेस), दीपक अधिकारी (तृणमूल कांग्रेस), सन्नी देओल (भाजपा), गौतम गंभीर (भाजपा), रवि किशन (भाजपा), मनोज तिवारी (भाजपा) आदि। इसी तरह से राज्य सभा में कुछ चर्चित नाम हैं: हरभजन सिंह (आप), जया बच्चन (सपा) आदि। पूर्व लोकसभा सेक्रेटरी श्री पी डी टी अचारी के अनुसार, संसद के हर एक मिनट को चलाने का खर्चा करीब 2.5 लाख होता है जो बिल्डिंग की व्यवस्था, बिजली, पानी, भोजन, सेक्योरिटी, सासंद भत्ता, कर्मचारियों की सैलरी आदि के रूप में दिया जाता है। जनता जो ना केवल देश को चलाने के लिये कर देती है परंतु योग्य सांसदों को चुनने के लिये अपना बहुमूल्य वोट भी देती है। गणतंत्र मे यह ज़रूरी होता है की हम अपने सांसदों के बारें में जानकार

Nash Equilibrium and Indian Politics

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  The fundamental concept of an “equilibrium” in a game comes from the work of John Nash. The concept, known as Nash equilibrium, can be applied in Politics for any democratic election. If you have studied economics, you can easily remember the Prison dilemma example where two criminals have only one Nash equilibrium where both un-cooperate and defect. For non-economic students, John Forbes Nash was an American mathematician widely famous in economics. Nash did a Ph.D. in 1950 from Princeton University with only a 28-page dissertation on non-cooperative games. Nash won the Nobel Prize and one Hollywood movie about his life was made called “A Beautiful Mind”. I suggest you please review Nash Equilibrium & background for more details before you proceed with this article ( Wiki & Movie ). In the Indian election context, let us take one example and certain assumptions for simplicity before we analyze all possible equilibrium and Nash equilibrium. This article is an attempt to answ

शहरी मनई - एक परिचय

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 " शहरी मनई", उन सभी व्यक्तियों की कहानी है जिन्होंने जीवन का ज़्यादातर समय पढ़ाई या नौकरी की वजह से शहर में बिताया है परंतु अपनी आत्मा और दिल गाँव में बसा रखी है। लेखक ने यह शिर्षक इसलिये चुना है क्योकी लेखक को बचपन मे उनके गाँव (जन्मस्थान - सनाथपुर गाँव , भदोही जनपद, उत्तर प्रदेश ) में उनके सगे काका द्वारा इसी तरह से संबोधन किया जाता था । इस संबोधन के पीछे प्रमुख कारण यह था की लेखक की शिक्षा मूलतः गाँव से करीब 80 किमी दूर प्रयागराज (पुराना नाम - इलाहाबाद शहर) मे हुयी थी और गाँव में केवल गर्मी या जाड़ों की छुट्टियों में कुछ महिनों के लिये ही जाना होता था, ज़्यादातर समय शहरों में ही बीतता था। लेखक ने प्रयाराज शहर से वर्ष 2000 मे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सांख्यिकी (Statistics) मे परा-स्नातक करने के बाद वर्ष 2003 मे अर्थशास्त्र विषय से IGIDR Mumbai से एम. फ़िल कोर्स किया जिसके पश्चात वर्ष 2004 से अभी तक से कार्पोरेट जगत में कार्यरत है। वर्तमान समय मे लेखक बैग्लोर मे 2011 से परिवार के साथ रहकर जीवन-यापन कर रहें है। लेखक ने रोज़गार के साथ सत्र 2018-2023 मे PhD की पढ़ायी N

WHY RURAL INDIA FAILS TO PROSPER? (Part II)

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  In continuation of our earlier blog on the same topic, we are trying to understand the various factors other than the lack of open meetings causing rural India to fail to prosper as expected? Though the lack of open meetings in villages is a major cause for non-development there are various other inter-link causes for hampering the growth in rural India. In this blog, we may not be able to cover each factor in detail, but we can list down the significant factors as root causes and we can provide details of each factor in later blogs. Agriculture or Farmers are the most popular words in a democracy like India because more than half of the population (~65%) belongs to Rural India. For rural India, Indian Government has all the schemes to support farmers, pensions for poor old age/widow/handicapped under social welfare schemes, free education in Government school (under Right to Education), Food security system under Public Distribution System (PDS) to provide food and non-food items

WHY RURAL INDIA FAILS TO PROSPER? (Part I)

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We pay taxes and make the Government accountable for work. Govt allocate budgets, makes some policies, and thinks that bureaucrats will implement. Then where things fail. Let us take one example. Each Village gets a budget in crore per annum for development. The policy is that there will be one Gram Panchayat head “Pradhan”/”Sarpanch” elected by the people and there will be around 11-13 other elected members (depending on the number of wards) to pass any proposal and one will be Govt servant called Secretary. The policy is that there should be regular open meetings in each village and any proposal should be finalized when the majority of the members passed that proposal. Now where is the problem? Let us go more deeper. In most of the villages, the elected Gram Panchayat “Pradhan” manipulated these members. Most of these members are uneducated, poor, and elected from each ward of the villages. It is always easy to influence them by making one or two offers, e.g. one solar light, hand p

ग्रामीण विकास में पंचायती राज की भूमिका

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  देश व् समाज के विकास में पंचायत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है| पंचायत अतीत में भी थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी, लेकेन भविष्य की पंचायत को और मजबूत बनाना होगा क्योंकि पंचायत लोकतंत्र एवं विकास की पहली सीढ़ी है| यह जितनी उन्नत एवं सवैधानिक होगी, देश की वय्वस्था में उतना ही निखार आएगा| भविष्य की पंचायत और सशक्त बनानी होगी, जिससे विकास की गति और तेज़ हो सके| पंचायत ने हर वर्ग को हिस्सेदारी दिलाते हुए लोकतंत्र की असली तस्वीर दिखाई है| यही वजह है की सविधान निर्माण के वक़्त ही गांधी जी के ग्राम स्वराज पर चर्चा हुई और सविधान के अनुच्छेद ४० में संसोधन करके पंचायत को जोड़ा गया| यह अलग बात है की उस समय पंचायत को वह अधिकार नहीं मिला, जो आजादी के वक़्त ही मिल जाना चाहिए था| लेकिन समय के साथ इस चूक को महसूस किया गया और सविधान में संसोधन की जरूरत समझी गयी| सविधान के ७३ संसोधन के जरिये ग्राम स्वराज के सपने को साकार किया गया| विकास किसी भी तरह का हो, उसमे किसी भी तरह से पंचायत अपनी भूमिका निभाती हैं| पंचायत की बिना विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि आज भी भारत की ६५% से जायदा की आबाद