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बदलता गाँव, बदलता देश

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देश को आजाद हुए 68 (2015) वर्ष हो चुके हैं और स्वाधीनता के इन 68 वर्षों में देश काफी आगे निकल गया है| महानगर से लेकर गाँव तक में स्थितियां काफी बदली हैं| गाँव पहले से ज्यादा समृद्ध हुए हैं और ग्रामीण ज्यादा जागरूक हुआ है| देश में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है| महिलाएं हो या अनुसूचित जाती या जनजाति सभी की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति में भी एक सकारात्मक बदलाव आया है| समाज के सभी क्षेत्रों में इनका प्रभाव और योगदान बढ़ा है| लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है की सामाजिक न्याय की चुनोतियाँ समाप्त हो गयी हैं| अभी भी काफी कुछ करना शेष है| सरकार के साथ-साथ आज बड़े पैमाने पर सामाजिक पहलों की भी आवश्यकता है| सामाजिक व्यवस्थाओं को निरस्त करने की बजाये यदि उन्हें शिक्षित, सभ्य और जागरूक बनाया जाये तो वे सामाजिक परिवर्तन की बड़ी वाहक बन सकती हैं| कम हुई गरीबी    परिवारों के मुख्य श्रोत के लिए, गैर-कृषि कार्यकलापों पर निर्भर होने के कारण ग्रामीण गरीबी में काफी कमी आई है| ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी अनुपात 90 के दशक के पहले 50 फीसदी से अधिक रहा है| 90 के दशक के मध्य आत